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पता ही नहीं चला कि कब वो मुलाकाते एक प्यार भरे अहसास में बदल गई. वो बारिश की बूंदे ही तो थी जिन्होंने हमें पहली बार मिलवाया था. मुझे आज भी याद है जनवरी की उन सर्द दिनों में यूनिवर्सिटी में पढने जाना. एक दिन जैसे ही हम क्लास से बाहर निकले और अचानक से बारिश शुरू हो गई. दुसरे क्लासमेट्स तो चले गए. मेरे पास छतरी नहीं थी तो मै वहीँ एक कोने में खड़ा होकर बारिश रुकने का इंतजार करने लगा. लेकिन बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. लेकिन तभी उसकी आवाज़ ने मेरा ध्यान भटकाया. मैंने पलटकर देखा कि वो भी वहीँ पर खड़ी थीं. लेकिन कुछ परेशान सी. मैंने उससे उसकी परेशानी की बारे में पूछा लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और ना में सिर हिला दिया. मैंने भी ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा. लेकिन थोड़ी देर बाद उसने पूछा कि टाइम क्या हुआ हैं? मैंने उसे बताया और उसने धीमे से थैंक्स कहा. मै फिर से बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगा. एक और तो बारिश की बूंदे मन को अच्छी लग रही थी तो दूसरी और घर जाने की जल्दी में दिमाग बारिश के रूकने की दुआ मांग रहा था….
…शेष अगली बार
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